टाइम्स ऑफ़ इंडिया के इस लेख का अनुवाद: https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/toi-edit-page/democracy-has-been-mangled-in-bhadohi/
 
भदोही में लोकतंत्र की हत्या
- संजीव सभलोक
 
कुछ महीने पहले मैने भदोही जिले में किए जा रहे बेहतरीन कार्य पर रिपोर्ट किया था, जहाँ कुछ नौजवान नेता स्वतंत्रता का संदेश जनता तक पहुँचा रहे हैं. 
 
१८ महीने के कड़े चुनाव अभियान के बाद, हज़ारों की संख्या में भदोही की जनता ३२ साल के युवा प्रत्याशी, श्री रबी कांत भारती को वोट देने को उत्सुक थी. लेकिन भदोही के चुनाव निर्वाचन अधिकारी ने, श्री रबी कांत भारती के ६२ पेज के नामांकन को, बिना लिखित वजह बताए रद्द करके उस जनता को बहुत निराश कर दिया है.
 
सिर्फ़ श्री रबी कांत भारती के नामांकन को ही नहीं, भदोही के चुनाव निर्वाचन अधिकारी ने २३ और नामांकन पत्रों को रद्द करके जनता में क्रोध और उत्तेजना की भावना जगा दी है. इतने ज़्यादा नामांकनों का रद्द होना नागरिकों के चुनाव लड़ने के लोकतांत्रिक अधिकार का निरस्त किए जाने जैसा है जो एक अभूतपूर्व घटना है.
 
दरअसल हक़ीकत इससे भी ज़्यादा खराब है.  भाजपा प्रत्याशी ने सरासर ग़लत सूचना दर्ज की - अपने शपथ पत्र में उन्‍होंने कहा कि वे बसपा के उम्मीदवार हैं. फिर भी चुनाव निर्वाचन अधिकारी ने उनके नामांकन को स्वीक्र्त कर लिया. ज़ाहिर है कि चुनाव निर्वाचन अधिकारी भाजपा के अधीन काम कर रहे हैं और स्वच्छ निरपेक्ष चुनाव नहीं करवा सकते.
 
श्री रबी कांत भारती के नामांकन के रद्द होने के एक दिन बाद मैने चुनाव आयोग अधिकारी श्री अशोक लवासा जी से बात की. उन्होने मुझे बताया कि इस मामले में निर्वाचन अधिकारी का फ़ैसला अंतिम होता है और चुनाव आयोग उन्हें कुछ नहीं कह सकता. श्री अशोक लवासा ने यह भी बताया कि, केंद्रीय प्रेक्षक निर्वाचन अधिकारी को सही प्रक्रिया के बारे में बता सकता है और यह प्रेक्षक नामांकन पत्र की जाँच के समय भी मौजूद रहना चाहिए था. लेकिन गये ३ दिनों से श्री रबी कांत भारती इन प्रेक्षक को बिना सफलता के ढूँढ रहे हैं.
 
श्री रबी कांत भारती के बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों का खून हो रहा है. हमारी पार्टी अब उच्च न्यायालय जाएगी और निर्वाचन अधिकारी के इस निर्णय को चुनौती देगी. मुझे यकीन है कि भदोही के चुनाव का सारा खर्चा व्यष्ट होगा क्योंकि ये अधूरा चुनाव उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया जाएगा.
 
यह भदोही की घटना सोये हुए से चुनाव आयोग को निद्रा से जगाने की एक पुकार है. निर्वाचन अधिकारी चुनाव आयोग का हिस्सा है, इसलिए आख़िर में सारी ज़िम्मेवारी चुनाव आयोग की ही है. चुनाव आयोग सिर्फ़ पुस्तिकाएँ और कुछ सामान्य सवालों के उत्तर जारी करके अपने हाथ नहीं झाड़ सकता, खास कर जब निर्वाचन अधिकारी साफ साफ तौर से अपने राजनीतिक आकाओं के लिए काम कर रहा हो. चुनाव आयोग का काम है कि भारत के नागरिकों को स्वच्छ चुनाव में भाग लेने का मौका दिला सके - चाहे वो एक मतदाता के रूप में हो या उम्मीदवार के.
 
भारतीय नागरिकों का जनता का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार संविधान की धारा ८४ से आता है जिसमे वांछित उम्र और शपथ ग्रहण की जानकारी भी दी गयी है. छोटी मोटी प्रक्रियात्मक जानकारी १९५१ के जनता प्रतिनिधित्व अधिनियम में दी गयी है. संविधान में कहीं भी ये नहीं लिखा है कि अगर कोई मामूली टाइपिंग की ग़लती करे तो उस प्रत्याशी का नामांकन और चुनाव लड़ने का संवेधानिक अधिकार रद्द कर दिया जाए. ये सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में ही दिए गये हैं, जिसपर चुनाव आयोग और उसके अधिकारियों के काम आधारित हैं. इसीलिए १९५१ के जनता प्रतिनिधित्व अधिनियम के भाग ३६(४) यह लिखा है कि, निर्वाचन अधिकारी किसी भी नामांकन पत्र को बिना खास वजह के रद्द नहीं कर सकता. जब लोग जेल तक में बैठ कर चुनाव लड़ सकते हैं तब श्री भारती जैसे सॉफ-सुथरे प्रत्याशी का, जिन पर कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं है, यह चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे छीना जा सकता है?
 
चुनाव आयोग की वेब साइट पर साफ लिखा है कि निर्वाचन अधिकारी का काम उम्मीदवारों को नामांकन पत्र भरने में मदद करना है, ना कि छोटी-छोटी ग़लतियों को लेकर नामांकन रद्द करना. सवाल १२ कहता है: "अगर शपथ पत्र के ज़रूरी हिस्से नहीं भरे गये हैं तो क्या नामांकन रद्द किया जा सकता है?" जवाब: "हाँ, क्योंकि ये एक महत्वपूर्ण दोष होगा. चुनाव आयोग के निर्देशानुसार, निर्वाचन अधिकारी को किसी व्यक्ति को नियुक्त करना चाहिए जो उम्मीदवारों से उनके शपथ पत्र में सारी ज़रूरी जानकारी लिखवा सके. जहाँ कुछ नहीं लिखना हो, वहाँ "शून्य" या "लागू नहीं है" लिखा जाना चाहिए." चुनाव आयोग का उद्देश्य साफ जाहिर है कि निर्वाचन अधिकारी उम्मीदवारों की नामांकन पत्र भरने में मदद करेगा.
 
बहरहाल श्री भारती के मामले में ऐसा हुआ ही नहीं कि नामांकन का कोई "महत्वपूर्ण हिस्सा" "बिल्कुल नहीं भरा गया" हो. सारी सूचियाँ पूर्णत: भरी गयीं थी जिसके द्वारा यह पुष्टि की गयी थी कि उनके खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं है. उन्होने अनजाने में मुख्य सवाल का जवाब नहीं भरा ("हाँ / ना") लेकिन बाकी सभी ब्योरे सॉफ भरे थे - कि उनके खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं है. उनके नामांकन पत्र से कोई भी ये निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. अत: मुख्य सवाल का सही तरह से जवाब दिया गया है. निर्वाचन अधिकारी के पास कोई कारण नहीं हो सकता ये कहने का कि कोई भाग "बिल्कुल नहीं भरा गया."
 
फिर भी, ये निर्वाचन अधिकारी की ज़िम्मेवारी बनती थी की वो "किसी को नियुक्त करे जो (सिर्फ़ सलाह ही नहीं दे बल्कि) सारी ज़रूरी जानकारी उम्मीदवारों से भरवा सके." निर्वाचन अधिकारी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. लेकिन खुशी से भाजपा के प्रत्याशी की ग़लत घोषणा स्वीकार कर ली. इससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि निर्वाचन अधिकारी भारतीय संविधान के लिए नहीं बल्कि भाजपा के लिए काम कर रहा था.
 
ये सच है कि श्री भारती के नामांकन पत्र की रसीद में लिखा था कि भाग ५ व ६ भरे जाने चाहिए. लेकिन श्री भारती का इस मामले में कम अनुभव होना, भारतीय क़ानून के हिसाब से, बहुत गंभीर नहीं था. चुनाव आयोग की उम्मीदवार-पुस्तिका के अनुसार निर्वाचन अधिकारी को नामांकन पत्र निरस्त करने के लिए  लिखित कारण देना ज़रूरी है, और उम्मीदवार को कोई भी शेष बातों का जवाब देने के लिए और समय दिया जाना चाहिए. जाँच के दिन, श्री भारती ने नामांकन पत्र को रद्द किए जाने के लिखित कारण देने की माँग की थी लेकिन ये कारण नहीं दिया गया. उन्होने संशोधित शपथ-पत्र भरने का भी प्रयास किया, लेकिन इसकी भी अनुमति नहीं दी गयी. अगले दिन श्री भारती ने जिला अधिकारी को लिखित अर्जी दी, लेकिन जिलाधिकारी के स्टेनो ने इस अर्जी की रसीद नहीं दी, और गार्ड्स ने श्री भारती को जिलाधिकारी के कार्यालय के अंदर भी नहीं घुसने दिया.
 
इन सब बातों से राजनीतिक छल की बू आती है. भदोही में हमारी पार्टी के समर्थकों के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन लिया गया है.
 
चुनाव आयोग का कुछ करना आवश्यक है - कम से कम इस तरह के, भारतीय लोकतंत्र की सरासर हत्या के मामले में. अभी भी ये चुनाव रोका जा सकता है - निर्वाचन अधिकारी को बर्खास्त किया जाए और नए सिरे से नामांकन प्रक्रिया शुरू की जाए. किसी भी परिस्थिति में चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी साफ है: एक समर्थ और निष्पक्ष निर्वाचन अधिकारी को नियुक्त करना जो क़ानून को और उसके उद्देश्य को समझता हो. चुनाव आयोग को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके प्रेक्षक उम्मीदवारों और निर्वाचन अधिकारी को सलाह देने के लिए मौज़ूद हैं. और अंत में, मैं कहूँगा कि चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिक अडोबी फॉर्म का इस्तेमाल क्यों नही करते जिसमें एक 'फ्लो चार्ट' होता है, जिससे इस तरह की मामूली सी ग़लती (जो श्री भारती से हुई) नहीं हो सकती. एक ऐसी व्यवस्था से, जिसमे ऐसी मामूली ग़लती होने गुंज़ाइश हो, और ऐसी मामूली ग़लती से एक नागरिक को चुनाव लड़ने के अधिकार से ही वंचित होना पड़े, चुनाव आयोग की ही छवि खराब होती है.
 
संयोग से, हमारे बाकी के ३ प्रत्याशी अपना नामांकन भरने में सफल रहे - गौहाटी, पुणे, और जयपुर से. मैं बहुत आत्मसंतोष के साथ ये कहना चाहता हूँ कि बीस साल पहले मैने भारतीय प्रशासनिक सेवा से सिर्फ़ इस एक उद्देश्य को लेकर त्यागपत्र दिया था -  भारत को एक सच्ची 'मूल उदारवादी' (लिबरल) पार्टी देना. छोटी ही सही, लेकिन ये एक अच्छी शुरुआत है. हम भदोही में उत्पन्न हुई इस बड़ी बाधा पर पार पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और हम प्रतिबद्ध हैं एक महान, स्वतंत्र भारत की प्रतिमा को सारे विश्व के सामने अगले कुछ ही सालों में लाने के लिए.
 
 
 
 

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  • On 29, Apr, 2019
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